एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा कि हे कबीर! आज श्राद्ध का दिन है और पितरो के लिये खीर बनानी है. आप जाइये, पितरो की खीर के लिये दूध ले आइये....
कबीर उस समय 9 वर्ष के ही थे..
कबीर दूध का बरतन लेकर चल पडे.....चलते चलते आगे एक गाय मरी हुई पडी मिली....कबीर ने आस पास से घास को उखाड कर, गाय के पास डाल दिया और वही पर बैठ गये...!!!
दूध का बरतन भी पास ही रख लिया.....
काफी देर हो गयी, कबीर लौटे नहीं, तो गुरु रामानंद ने सोचा....
पितरो को छिकाने का टाइम हो गया है...कबीर अभी तक नही आया....तो रामानंद जी खुद चल पडे दूध लेने.
चले जा रहे थे तो आगे देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे है...!!!
गुरु रामानंद बोले, अरे कबीर तू दूध लेने नही गया.?
कबीर बोले: स्वामीजी, ये गाय पहले घास खायेगी तभी तो दुध देगी...!!!
रामानंद बोले: अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खायेगी??
कबीर बोले: स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है....जब आज मरी गाय घास नही खा सकती...!!!
...तो आपके 100 साल पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खायेगे...??
यह सुनते ही रामानन्दजी
मौन हो गये..!!
उन्हें अपनी भूल का ऐहसास
हुआ.!!
***
*माटी का एक नाग बना के*
*पुजे लोग लुगाया*
*जिंदा नाग जब घर में निकले*
*ले लाठी धमकाया*
*जिंदा बाप कोई न पुजे*
*मरे बाद पुजवाया*
*मुठ्ठीभर चावल ले के*
*कौवे को बाप बनाया*
*यह दुनिया कितनी बावरी हैं*
*जो पत्थर पूजे जाय*
*घर की चकिया कोई न पूजे*
*जिसका पीसा खाय*
----संत कबीर
भावार्थ:-
जो जीवित है उनकी सेवा करो..!!
वही सच्चा श्राद्ध है.!!
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