Thursday, March 21, 2019

विपरीत परिस्थिति में भी ठंडा रहे.. वह व्यक्ति "हीरा" है..!!

एक राजा का दरबार लगा हुआ था,
क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा का दरबार खुले में लगा हुआ था ।
पूरी आम सभा सुबह की धूप में बैठी थी, महाराज के सिंहासन के सामने एक शाही मेज थी और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थी ।
पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि सभी दरबार में बैठे थे
और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे ।
उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा ।
प्रवेश मिल गया तो उसने कहा “मेरे पास दो वस्तुएं हैं, मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नहीं पाता सब हार जाते हैं और मैं विजेता बनकर घूम रहा हूँ, अब आपके नगर में आया हूँ ।"
राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तुएं हैं ?"
तो उसने दोनों वस्तुएं उस कीमती मेज पर रख दी ।
वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान आकार, समान रुप रंग, समान
प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था ।
राजा ने कहा ये दोनों वस्तुएं तो एक हैं ।
तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो एक सी ही देती हैं लेकिन हैं भिन्न । इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा और दूसरा महज काँच का टुकडा।
लेकिन रूप रंग सब एक हैं, कोई आज तक परख नहीं पाया क़ि कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा..।
कोई परख कर बताये कि....ये हीरा है और दूसरा काँच..
अगर परख खरी निकली...तो मैं हार जाऊंगा और.. यह कीमती हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी में जमा करवा दूंगा.
पर शर्त यह है कि यदि कोई नहीं पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी ।
इसी प्रकार से मैं कई राज्यों से जीतता आया हूँ ।
राजा ने कहा मैं तो नहीं परख सकूंगा ।
दीवान बोले हम भी हिम्मत नहीं कर सकते क्योंकि दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान हैं ।
हारने के डर से कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था ।
क्योंकि हारने पर पैसे देने पड़ेंगे...पर इसका कोई सवाल नहीं था, क्योंकि राजा के पास बहुत धन था, पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी, इसका सबको भय था ।
कोई व्यक्ति पहचान नहीं पाया ।
आखिरकार पीछे थोड़ी हलचल हुई ।
एक अंधा आदमी हाथ में लाठी लेकर उठा.. उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो...मैंने सब बातें सुनी हैं...और यह भी सुना है कि....कोई परख नहीं पा रहा है...एक अवसर मुझे भी दो ।
एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुंचा ।
उसने राजा से प्रार्थना की कि मैं तो जनम से अंधा हूँ फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये, जिससे मैं भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ ।
और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं..
और यदि सफल न भी हुआ तो वैसे भी आप तो हारे ही हैं ।
राजा को लगा कि इसे अवसर देने में क्या हर्ज है ।
राजा ने कहा क़ि ठीक है।
तो तब उस अंधे आदमी को दोनों चीजें छुआ दी गयी ।
और पूछा गया कि इसमें कौन सा हीरा है और कौन सा काँच….??
यही तुम्हें परखना है ।
कथा कहती है कि उस आदमी ने एक क्षण में कह दिया कि यह हीरा है और बाकी काँच।
जो आदमी इतने राज्यों को जीतकर आया था वह नतमस्तक हो गया और बोला “सही है आपने पहचान लिया.. धन्य हो आप… ।
अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी में दे रहा हूँ ।
सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी
बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला
उस आदमी, राजा और अन्य सभी लोगों ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे पहचाना कि यह हीरा है और दूसरा काँच ?
उस अंधे ने कहा कि सीधी सी बात है मालिक धूप में हम सब बैठे हैं.. मैंने दोनों को छुआ .. जो ठंडा रहा वह हीरा.....
जो गरम हो गया वह काँच.....
जीवन में भी देखना
जो बात-बात में गरम हो जाये, उलझ जाये...
वह व्यक्ति "काँच" है
और
जो विपरीत परिस्थिति में भी ठंडा रहे..
वह व्यक्ति "हीरा" है..!!...

Saturday, March 9, 2019

किसी के चरित्र और शैली को उनके वर्तमान व्यवहार से ना तौलें।

*प्रेरक कहानी*

एक नदी के किनारे दो पेड़ थे। उस रास्ते एक छोटी सी चिड़िया गुजरी और पहले पेड़ से पूछा:
बारिश होने वाली है,
क्या मैं और मेरे बच्चे तुम्हारी टहनी में घोंसला बनाकर रह सकते हैं लेकिन वो पेड़ ने मना कर दिया।

चिड़िया फिर दूसरे पेड़ के पास गई और वही सवाल पूछा:
दूसरा पेड़ मान गया,
चिड़िया अपने बच्चों के साथ खुशी-खुशी दूसरे पेड़ में घोसला बना कर रहने लगी।
एक दिन इतनी अधिक बारिश हुई कि इसी दौरान पहला पेड़ जड़ से उखड़ कर पानी मे बह गया।

जब चिड़िया ने उस पेड़ को बहते हुए देखा तो कहा:
जब तुमसे मैं और मेरे बच्चे शरण के लिये आए तब तुमने मना कर दिया था अब देखो तुम्हारे उसी रूखे बर्ताव की सजा तुम्हे मिल रही है।

जिसका उत्तर पेड़ ने मुस्कुराते हुए दिया। मैं जानता था मेरी जड़ें कमजोर है और इस बारिश में टिक नहीं पाऊंगा,
मैं तुम्हारी और बच्चे की  जान खतरे में नहीं डालना चाहता था मना करने के लिए मुझे क्षमा कर दो और ये कहते-कहते पेड़ बह गया।

किसी के इंकार को हमेशा उनकी कठोरता न समझे
क्या पता उसके उसी इंकार से आप का भला हो,
कौन किस परिस्थिति में है शायद हम नहीं समझ पाएं।
इसलिए किसी के चरित्र और शैली को उनके वर्तमान व्यवहार से ना तौलें।

Tuesday, January 29, 2019

जो ईश्वर और सद् गुरु पर विश्वास रखते हैं, उनका बाल भी बाँका नहीं होता है

एक राजा बहुत दिनों से पुत्र की प्राप्ति के लिए आशा लगाए बैठा था लेकिन पुत्र नहीं हुआ। उसके सलाहकारों ने तांत्रिकों से सहयोग लेने को कहा***

सुझाव मिला कि किसी बच्चे की बलि दे दी जाए तो पुत्र प्राप्ति हो जायेगी***

राजा ने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो अपना बच्चा देगा,उसे बहुत सारा धन दिया जाएगा***

एक परिवार में कई बच्चें थे,गरीबी भी थी।एक ऐसा बच्चा भी था,जो ईश्वर पर आस्था रखता था तथा सन्तों के सत्संग में अधिक समय देता था***

परिवार को लगा कि इसे राजा को दे दिया जाए क्योंकि ये कुछ काम भी नहीं करता है,हमारे किसी काम का भी नहीं है***

*इसे देने पर राजा प्रसन्न होकर बहुत सारा धन देगा
ऐसा ही किया गया। बच्चा राजा को दे दिया गया***

राजा के तांत्रिकों द्वारा बच्चे की बलि की तैयारी हो गई***

राजा को भी बुलाया गया। बच्चे से पूछा गया कि तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ?***

बच्चे ने कहा कि ठीक है ! मेरे लिए रेत मँगा दिया जाए रेत आ गया***

बच्चे ने रेत से चार ढेर बनाए। एक-एक करके तीन रेत के ढेरों को तोड़ दिया और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया उसने कहा कि अब जो करना है करें***

यह सब देखकर तांत्रिक डर गए उन्होंने पूछा कि ये तुमने क्या किया है?

पहले यह बताओ। राजा ने भी पूछा तो बच्चे ने कहा कि
पहली ढेरी मेरे माता पिता की है मेरी रक्षा करना उनका कर्त्तव्य था परंतु उन्होंने पैसे के लिए मुझे बेच दिया***

*इसलिए मैंने ये ढेरी तोड़ी दूसरी मेरे सगे-सम्बन्धियों की थी। उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नहीं समझाया***

तीसरी आपकी है राजा क्योंकि राज्य की प्रजा की रक्षा करना राजा का ही धर्म होता है परन्तु राजा ही मेरी बलि देना चाह रहा है तो ये ढेरी भी मैंने तोड़ दी***

अब सिर्फ अपने सद् गुरु और ईश्वर पर ही मुझे भरोसा है इसलिए यह एक ढेरी मैंने छोड़ दी है***

राजा ने सोचा कि पता नहीं बच्चे की बलि देने के पश्चात भी पुत्र प्राप्त हो या न हो,तो क्यों न इस बच्चे को ही अपना पुत्र बना ले***

इतना समझदार और ईश्वर-भक्त बच्चा है।इससे अच्छा बच्चा कहाँ मिलेगा ?***

राजा ने उस बच्चे को अपना पुत्र बना लिया और राजकुमार घोषित कर दिया***

***जो ईश्वर और सद् गुरु पर विश्वास रखते हैं,उनका बाल भी बाँका नहीं होता है***

***हर मुश्किल में एक का ही जो आसरा लेते हैं,उनका कहीं से किसी प्रकार का कोई अहित नहीं होता है***
दीपक जैन पाटनी
इचलकरंजी

Sunday, December 23, 2018

ऐसे शब्द का प्रयोग करिये... जिससे, किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।

*महाभारत के युद्ध के बाद*....

18 दिन के युद्ध ने, द्रोपदी की उम्र को
80 वर्ष जैसा कर दिया था... शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी !

उसकी आंखे मानो किसी खड्डे में धंस गई थी, उनके नीचे के काले घेरों ने उसके रक्ताभ कपोलों को भी अपनी सीमा में ले लिया था !

श्याम वर्ण और अधिक काला हो गया था... युद्ध से पूर्व प्रतिशोध की ज्वाला ने जलाया था और, युद्ध के उपरांत पश्चाताप की आग तपा रही थी !

ना कुछ समझने की क्षमता बची थी ना सोचने की ।  कुरूक्षेत्र मेें चारों तरफ लाशों के ढेर थे ।  जिनके दाह संस्कार के लिए न लोग उपलब्ध थे न साधन ।

शहर में चारों तरफ विधवाओं का बाहुल्य था..  पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और, उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को ताक रही थी ।

तभी, * श्रीकृष्ण* कक्ष में दाखिल होते है !

द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है ... कृष्ण उसके सर को सहलाते रहते हैं और रोने देते हैं !
थोड़ी देर में, उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बिठा देते हैं ।

*द्रोपती* : यह क्या हो गया *सखा* ??
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था ।

*कृष्ण* : नियति बहुत क्रूर होती है पांचाली..
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !
हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है..
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और, तुम सफल हुई, द्रौपदी !

तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ... सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं, सारे कौरव समाप्त हो गए !
तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !

*द्रोपती*: सखा, तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या, उन पर नमक छिड़कने के लिए ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी, मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूं ।
हमारे कर्मों के परिणाम को हम, दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं.. तो, हमारे हाथ मे कुछ नहीं रहता ।

*द्रोपती* : तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदाई हूं कृष्ण ?

*कृष्ण* : नहीं द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो...
लेकिन, तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी भी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।

*द्रोपती* : मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?

*कृष्ण*:-
- जब तुम्हारा स्वयंबर हुआ...
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती
और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का
एक अवसर देती तो, शायद परिणाम
कुछ और होते !

- इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पांच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया...
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती
तो भी, परिणाम कुछ और होते ।
             और
- उसके बाद तुमने अपने महल में  दुर्योधन को अपमानित किया... वह नहीं करती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता... तब भी शायद, परिस्थितियां कुछ और होती ।

हमारे *शब्द* भी हमारे *कर्म* होते हैं द्रोपदी...

और, हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत जरूरी होता है... अन्यथा, उसके *दुष्परिणाम* सिर्फ स्वयं को ही नहीं.... अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं ।

संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है... जिसका " जहर " उसके " दांतों " में नही,
*"शब्दों " में है...

इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करिये।
ऐसे शब्द का प्रयोग करिये... जिससे, किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे।

बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं जो घर ईश्वर को पसंद हो, वहां ही बेटी होती हैं

दिल को छू गया

एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"

पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।"

पत्नी - "अगर लड़की हुई तो...?"
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी"

"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।"

"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू।"

"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।"

"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।"

पत्नी - "कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।"

पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा।"

"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।"

पत्नी -  "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी...?"

पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे।"

"इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं"

"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।"

"बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं
जो घर ईश्वर को पसंद हो, वहां ही बेटी होती हैं"

Thursday, December 20, 2018

जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी *"कर्ज वाली लडकि"* मुझे कुबूल नही...

*कर्ज वाली लडकि*

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा बाजि के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।

बाजि मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।

दीनमोहम्मद जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...

हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में *दहेज* की  बात करने आ रहे हैं.. बोले... *दहेज* के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..

बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी *दहेज* की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?"

कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..

घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर फिक्र की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी...

खैर..

अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी..

कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनमोहम्मद जी अब काम की बात हो जाए..

दीनमोहम्मद जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..

लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनमोहम्मद जी कि और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनमोहम्मद जी मुझे *दहेज* के बारे बात करनी है!...

दीनमोहम्मद जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..

समधी जी ने धीरे से दीनमोहम्मद जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....

आप लडकि कि विदाई में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब कबूल है... पर *कर्ज लेकर* आप एक रुपया भी *दहेज मत देना.* वो मुझे कुबूल नहीं..

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी *"कर्ज वाली लडकि"* मुझे कुबूल नही...

मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरे घर को बरकतों से भर देगी..

दीनमोहम्मद जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..

शिक्षा-  *कर्ज वाली लडकि ना कोई विदा करें न ही कोई कबुल करे*.

Sunday, December 16, 2018

आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं!!

माँ का तोहफा

एक दंपत्ती दिवाली की खरीदारी करने को हड़बड़ी में था! पति ने पत्नी से कहा- जल्दी करो मेरे पास" टाईम" नहीं है... कह कर रूम से बाहर निकल गया सूरज तभी बाहर लॉन मे बैठी "माँ" पर नजर पड़ी,,,
कुछ सोचते हुए वापिस रूम में आया।....शालू तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए....
शालिनी बोली नहीं पूछी। अब उनको इस उम्र मे क्या चाहिए होगी यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े इसमे पूछने वाली क्या बात है.....
वो बात नहीं है शालू... "माँ पहली बार दिवाली पर हमारे घर में रुकी हुई है" वरना तो हर बार गाँव में ही रहती है तो... औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती.........
अरे इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यूँ नही पूछ लेते झल्लाकर चीखी थी शालू, और कंधे पर हेंड बैग लटकाते हुए तेजी से बाहर निकल गयी......
सूरज माँ के पास जाकर बोला माँ हम लोग दिवाली के खरीदारी के लिए बाजार जा रहे हैं आपको कुछ चाहिए तो..
माँ बीच में ही बोल पड़ी मुझे कुछ नही चाहिए बेटा....
सोच लो माँ अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए.....
सूरज के बहुत जोर देने पर माँ बोली ठीक है तुम रुको मै लिख कर देती हूँ,  तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ कहकर, सूरज की माँ अपने कमरे में चली गई, कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सूरज को थमा दी।..                
सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा शालू माँ को भी कुछ चाहिए था पर बोल नही रही थी मेरे जिद्द करने पर लिस्ट बना कर दी है,, "इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है"
अच्छा बाबा ठीक है पर पहले मैं अपनी जरूरत की सारी सामान लूँगी बाद में आप अपनी माँ का लिस्ट देखते रहना कह कर कार से बाहर निकल गयी....
पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में Ac चालू करके बैठती हूँ आप माँ जी का सामान देख लो,,,
अरे शालू तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं मुझे भी जल्दी है,.....
देखता हूँ माँ इस दिवाली क्या मंगायी है... कहकर माँ की लिखी पर्ची जेब से निकलता है, बाप रे इतनी लंबी लिस्ट  पता नही क्या क्या मंगायी होगी जरूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगायी होगी,....... और बनो "श्रवण कुमार" कहते हुए गुस्से से सुरज की ओर देखने लगी,  पर ये क्या  सूरज की आंखों में आंसू........ और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था... पूरा शरीर काँप रहा था,,
शालिनी बहुत घबरा गयी क्या हुआ येसा क्या मांग ली है तुम्हारी माँ ने कह कर सूरज की हाथ से पर्ची झपट ली....
हैरान थी शालिनी भी इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे..... पर्ची में लिखा था....      

"बेटा सूरज मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए फिर भी तुम जिद्द कर रहे हो तो, और तुम्हारे "शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ" पल "मेरे लिए लेते आना.... ढलती साँझ हुई अब मैं, सूरज  मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है पल पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर.. जानती हूँ टाला नही जा सकता शाश्वत सत्‍य है,...... पर अकेले पन से बहुत घबराहट होती है सूरज ...... तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ कुछ पल बैठा कर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरा बुढ़ापा का अकेलापन... बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ.. कितने साल हो गए बेटा तूझे स्पर्श नही की एक फिर से आ मेरी गोद में सर रख और मै ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पा कर...और मुस्कुरा कर मिलूं मौत के गले क्या पता अगले दिवाली तक रहूँ ना रहूँ....
पर्ची की आख़री लाइन पढ़ते पढ़ते शालिनी फफक, फफक कर रो पड़ी...
ऐसी ही होती है माँ...

दोस्तों अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते है वो आपके जीवन के कल्पतरु है! उनका यथोचित सममान और आदर और सेवा-सुश्रुषा और देखभाल करें, यकीन मानिए आपके भी बूढ़े होने के दिन नजदीक ही है...उसकी  तैयारी आज से कर ले! इसमें कोई शक नही आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं!!

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