Saturday, October 20, 2018

अयोध्या नाथ सरकार ही अपनी बहन के प्रेम में बंध कर आये थे


अयोध्या के बहुत निकट ही पौराणिक नदी कुटिला है – जिसे आज टेढ़ी कहते हैं, उसके तट के निकट ही एक भक्त परिवार रहता था।
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उनके घर एक सरस्वती नाम की बालिका थी। वे लोग नित्य श्री कनक बिहारिणी बिहारी जी का दर्शन करने अयोध्या आते थे।
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सरस्वती जी का कोई सगा भाई नही था, केवल एक मौसेरा भाई ही था। वह जब भी श्री रधुनाथ जी का दर्शन करने आती, उसमे मन मे यही भाव आता की सरकार मेरे अपने भाई ही है।
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उसकी आयु उस समय मात्र दो वर्ष की थी। रक्षाबंधन से कुछ समय पूर्व उसने सरकार से कहा की मै आपको राखी बांधने आऊंगी।
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उसने सुंदर राखी बनाई और रक्षाबंधन पूर्णिमा पर मंदिर लेकर गयी। पुजारी जी से कहा कि हमने भैया के लिए राखी लायी है।
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पुजारी जी ने छोटी सी सरस्वती को गोद मे उठा लिया और उससे कहा कि मै तुम्हे राखी सहित सरकार को स्पर्श कर देता हूं और राखी मै बांध दूंगा।
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पुजारी जी ने राखी बांध दी और उसको प्रसाद दिया। अब हर वर्ष राखी बांधने का उसका नियम बन गया।
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समय के साथ वह बड़ी हो गयी और उसका विवाह निश्चित हो गया। वह पत्रिका लेकर मंदिर में आयी और कहा की मेरा विवाह निश्चित हो गया है, मै आपको न्योता देने आई हूं। चारो भाइयो को विवाह में आना ही है।
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पुजारी जी को पत्रिका देकर कहा कि मैंने चारो भाइयों से कह दिया है, आप पत्रिका सरकार के पास रख दो और आप भी कह दो की चारो भाइयों को विवाह में आना ही है। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गयी।
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विवाह का दिन आया। अवध में एक रस्म होती है कि विवाह के बाद भाई आकर उसको चादर ओढ़ाता है और कुछ भेट वस्तुएं देता है।
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उसकी मौसी ने अपने लड़के को कुछ सामान और ११ रुपये दिए और मंडप में पहुंचने को कहकर वह चली गयी।
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उसका मौसेरा भाई उपहार, वस्त्र और ११ रुपये लेकर रिक्शा पर बांध कर विवाह मंडप की ओर निकल पड़ा।
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रास्ते मे ही रिक्शा उलट गया और वह गिर गया। थोड़ी सी चोट आयी और लोगो ने उसको दवाखाने ले जाकर मलम पट्टी कराई।
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यहां सरस्वती जी घूंघट से बार बार मंडप के दरवाजे पर देख रही है और सोच रही है कि सरकार अभी तक क्यो नही आये।
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उसको पूरा विश्वास है कि चारो भाई आएंगे। माँ से भी कह दिया कि ध्यान रखना अयोध्या जी से मेरे भाई आएंगे – माँ ने उसको भोला समझकर हंस दिया।
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जब बहुत देर हो गयी तब व्याकुल होकर वह दरवाजे पर जाकर रोने लगी। दूर दूर के रिश्तेदार आ गए पर मेरे अपने भाई क्यो नही आये ? क्या मैं उनकी बहन नही हूं ?
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उसी समय ४ बड़ी मोटर गाड़िया और एक बड़ा ट्रक आते हुए उसने देखा। पहली गाड़ी से उसकी मौसी का लड़का और उसकी पत्नी उतरे। बाकी गाड़ीयों से और ३ जोड़िया उतरी।
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मौसी के लड़के के रूप में सरकार ही आये है। रत्न जटित पगड़ियां, वस्त्र, हीरो के हार पहन रखे है।
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श्री हनुमान जी पीछे ट्रक में समान भरकर लाये है, हनुमान जी पहलवान के रूप में आये थे।
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उन्होंने ट्रक से सारा सामान उतारना शुरू किया – स्वर्ण, चांदी, पीतल, तांबे के बहुत से बर्तन। बिस्तर, सोफे, ओढ़ने बिछाने के वस्त्र, साड़ियां, अल्मारियाँ, कान, नाक, गले, कमर, हाथ, पैर के आभूषण।
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मौसी देखकर आश्चर्य में पड़ गयी कि इतना कीमती सामान मेरा लड़का कहां से लेकर आया ?
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चारो का तेज और सुंदरता देखकर सरस्वती समझ गयी कि यह मेरे चारो भाई है।
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सरस्वती जी के आनंद का ठिकाना न रहा, उसका रोना बंद हो गया। सरकार ने इशारे से कहा कि किसीको अभी भेद बताना नही, गुप्त ही रखना।
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इनका रूप इतना मनोहर था कि सब उन्हें देखते ही राह गए, कोई पूछ न पाया कि यह गाड़ियां कैसे आयी, ये अन्य ३ लोग कौन है ?
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लोग हैरान हो कर देख रहे थे कि अभी तक रो रही थी, और अभी इतना हँस रही है और आनंद में नाच रही है। किसी को कुछ समझ नही आ रहा था।
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जब तक उसकी विदाई नही हुई तब तक चारो भाई उसके साथ ही रहे। सभी गले मिले और आशीर्वाद दिया।
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सरस्वती ने कहा – जैसे आज शादी में सब संभाल लिया वैसे जीवन भर मुझे संभालना।
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जब वह गाड़ी में बैठकर पति के साथ जाने लगी तब चारों भाई अन्तर्धान हो गए।
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उसी समय असली मौसेरा भाई किसी तरह लंगड़ाते हुए पट्टी लगाए हुए वहां आया। उसने वस्त्र ओढाया उपहार और ११ रुपये दिया।
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मौसी ने पूछा कि अभी अभी तो तू बड़े कीमती वस्त्र पहने गाड़ी और ट्रक लेकर आया था ? ये पट्टी कैसे बंध गयी और कपड़े कैसे फट गए ? उसको तो कुछ समझ ही नही आ रहा था।
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अंत मे सरस्वती से उसकी माता ने एकांत मे पूछा की बेटी सच सच बता की क्या बात है ? ये चारों कौन थे ?
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तब उसने कहा की माँ ! मैने आपसे कहा था कि ध्यान रखना, मेरे भाई अयोध्या से आएंगे।
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माँ समझ गयी की इसके तो ४ ही भाई है और वो श्रीरघुनाथ जी और अन्य तीन भैया ही है।
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माँ जान गई कि श्री अयोध्या नाथ सरकार ही अपनी बहन के प्रेम में बंध कर आये थे और अपनी बहन को इतने उपहार, आभूषण और वस्तुएं दे गए कि नगर के बड़े बड़े सेठ, नवाबो के पास भी नही थे।

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