Saturday, December 8, 2018

सातवां घड़ा - प्रेरक कहानी, आपको कुछ सीख देकर जाएगी

सातवां घड़ा - प्रेरक कहानी, आपको कुछ सीख देकर जाएगी

गाँव में एक आदमी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। नाई ईमानदार था, अपनी कमाई से संतुष्ट था। उसे किसी तरह का लालच नहीं था। आदमी की पत्नी भी अपनी पति की कमाई हुई आय से बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी। कुल मिलाकर उनकी जिंदगी बड़े आराम से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।

आदमी अपने काम में बहुत निपुण था। एक दिन वहाँ के राजा ने आदमी को अपने पास बुलवाया और रोज उसे महल में आकर हजामत बनाने को कहा।

आदमी ने भी बड़ी प्रसन्नता से राजा का प्रस्ताव मान लिया। आदमी को रोज राजा की हजामत बनाने के लिए एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी।

इतना सारा पैसा पाकर आदमी की पत्नी भी बड़ी खुश हुई। अब उसकी जिन्दगी बड़े आराम से कटने लगी। घर पर किसी चीज की कमी नहीं रही और हर महीने अच्छी रकम की बचत भी होने लगी। आदमी, उसकी पत्नी और बच्चे सभी खुश रहने लगे।

एक दिन शाम को जब आदमी अपना काम निपटा कर महल से अपने घर वापस जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक आवाज सुनाई दी।

आवाज एक यक्ष की थी। यक्ष ने आदमी से कहा-- *‘‘मैंने तुम्हारी ईमानदारी के बड़े चर्चे सुने हैं, मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूँ और तुम्हें सोने की मुद्राओं से भरे सात घड़े देना चाहता हूँ। क्या तुम मेरे दिये हुए घड़े लोगे ?"*

आदमी पहले तो थोड़ा डरा, पर दूसरे ही पल उसके मन में लालच आ गया और उसने यक्ष के दिये हुए घड़े लेने का निश्चय कर लिया।

आदमी का उत्तर सुनकर उस आवाज ने फिर आदमी से कहा-- *‘‘ठीक है सातों घड़े तुम्हारे घर पहुँच जाएँगे।’’*

आदमी जब उस दिन घर पहुँचा, वाकई उसके कमरे में सात घड़े रखे हुए थे। आदमी ने तुरन्त अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं और दोनों ने घड़े खोलकर देखना शुरू किया। उसने देखा कि छः घड़े तो पूरे भरे हुए थे, पर सातवाँ घड़ा आधा खाली था।

आदमी ने पत्नी से कहा— *‘‘कोई बात नहीं, हर महीने जो हमारी बचत होती है, वह हम इस घड़े में डाल दिया करेंगे। जल्दी ही यह घड़ा भी भर जायेगा।* और इन सातों घड़ों के सहारे हमारा बुढ़ापा आराम से कट जायेगा।

अगले ही दिन से आदमी ने अपनी दिन भर की बचत को उस सातवें घड़े में डालना शुरू कर दिया। पर सातवें घड़े की भूख इतनी ज्यादा थी कि वह कभी भी भरने का नाम ही नहीं लेता था।

धीरे-धीरे आदमी कंजूस होता गया और घड़े में ज्यादा पैसे डालने लगा, क्योंकि उसे जल्दी से अपना सातवाँ घड़ा भरना था।

आदमी की कंजूसी के कारण अब घर में कमी आनी शुरू हो गयी, क्योंकि आदमी अब पत्नी को कम पैसे देता था। पत्नी ने आदमी को समझाने की कोशिश की, पर आदमी को बस एक ही धुन सवार थी—  *"सातवां घड़ा भरने की।"*

अब आदमी के घर में पहले जैसा वातावरण नहीं था। उसकी पत्नी कंजूसी से तंग आकर बात-बात पर अपने पति से लड़ने लगी। घर के झगड़ों से आदमी परेशान और चिड़चिड़ा हो गया।

एक दिन राजा ने आदमी से उसकी परेशानी का कारण पूछा। आदमी ने भी राजा से कह दिया अब मँहगाई के कारण उसका खर्च बढ़ गया है। आदमी की बात सुनकर राजा ने उसका मेहनताना बढ़ा दिया, पर राजा ने देखा कि पैसे बढ़ने से भी आदमी को खुशी नहीं हुई, वह अब भी परेशान और चिड़चिड़ा ही रहता था।

एक दिन राजा ने आदमी से पूछ ही लिया कि कहीं उसे यक्ष ने सात घड़े तो नहीं दे दिये हैं ? आदमी ने राजा को सातवें घड़े के बारे में सच-सच बता दिया।

तब राजा ने आदमी से कहा कि *"सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवां घड़ा साक्षात लोभ है, उसकी भूख कभी नहीं मिटती।"*

आदमी को सारी बात समझ में आ गयी। आदमी ने उसी दिन घर लौटकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दिये।

घड़ों के वापस जाने के बाद आदमी का जीवन फिर से खुशियों से भर गया था।

निष्कर्ष --
             *हे आत्मन्! लोभ या लालच का घड़ा कभी नहीं भरता। क्यों कि लोभ ही सब पापों का बाप है। हम जितने भी पाप करते हैं सब लोभ के वश होकर करते हैं। इसलिये विचार करो हम सभी को जो भी मिला है , अपने कर्मों के अनुसार  ही मिला है, अच्छे या बुरे जो भी संयोग मिले हैं वो भी हमारी करनी का ही फल है , हमें उसी में खुश रहना चाहिए। वर्ना लालच का तो सातवें घड़े की तरह कभी अंत नहीं होगा !!*

                *संतोषी सर्वत्र सुखी*

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