Sunday, November 4, 2018

धनतेरस का महत्व, धनतेरस के दिन की पूजा विधि, क्या है धनतेरस, धनतेरस की लोककथा, क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार, धनतेरस के दिन क्या करें ।

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दिवाली पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस त्योहार में धनतेरस का बड़ा महत्व होता है। धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है। इस साल 5 नवंबर को धनतेरस मनाया जाएगा। इस दिन अपनी पसंद की नई चीजें खरीदने का शुभ मूहूर्त पूरे दिन का है। दिवाली में पूरी रात घर और हर जगहों पर दीप जलाकर रौशनी फैलाने की और अंधेरा और बुराई दूर करने की कोशिश की जाती है। यहां आप पढ़ें इससे संबंधित जरूरी बातें..

क्या है धनतेरस-

धनतेरस का शाब्दिक अर्थ है धन और तेरा (13)। इसका मतलब है धन के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है धनतेरस जो कार्तिक महीने के 13वें दिन होता है। परंपरा ये है कि इस दिन हिंदू सोने और चांदी और इसके अलावे बर्तनों की खरीदारी करते हैं। इतना ही नहीं बिजनेस या फिर कुछ भी नया शुभ काम करना हो तो इस दिन शुरुआत करना अच्छा माना जाता है। इस दिन घरों में दीप जलाकर यमदेव को दूर किया जाता है। कुछ लोग इस दिन जुआ भी खेलते हैं उनका मानना होता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी उनपर प्रसन्न होगी।
कुछ लोगों का मानना है कि सोने और चांदी की खरीदारी ही धनतेरस का असली महत्व है। लेकिन इसका महत्व धन, सोने, चांदी और गहनों से कहीं ज्यादा है। इस दिन घर के सभी सदस्य नए कपड़े पहनते हैं चारों तरफ रोशनी फैलाते हैं। घर पर नए-नए पकवान बनते हैं। धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कुबेर धन के देवता हैं और उनकी पूजा करने से वे खुश होकर धनवान बना देते हैं।

क्या है धनतेरस की कथा

राजा हिमा के 16 वर्षीय बेटे को अपनी राशि के अनुसार पता चलता है कि उसकी शादी की चौथी रात एक सांप के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। शादी के चौथे दिन उसकी पूरी रात जागकर उसकी रखवाली करती रही, और अपने पति को भी जगाए रखा। इस दौरान उसने अपने सारे गहने उतार कर दीए की रौशनी को जलाकर कमरे के दरवाजे के पास रख दिया था। जब यम देवता उसे लेने के लिए आए तो वहां आकर उनकी आंखें वहां की रौशनी देखकर चौंधिया गई। वे इतनी रौशनी के कारण घर के अंदर प्रवेश नहीं कर सके और बिना उसकी जान लिए वहां से प्रस्थान कर गए। इसके बाद राजकुनार की जान बच गई। बस तब से ही अपने आस-पास से बुराई को भगाने के लिए घर के दरवाजे पर दीपों की रौशनी फैलाई जाती है।
महाराष्ट्र में इसे नैवेद्य के नाम से जाना जाता है। यहां धनिया के बीज और जैगरी के साथ एक खास तरह का पकवान बना कर देवी लक्ष्मी को भोग लगाया जाता है। दक्षिण भारत में धनतेरस के दिन गाय को आभूषणों से सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है क्योंकि गाय लक्ष्मी का स्वरुप होती है।

धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं। कहा जाता है कि समु्द्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।[

धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीजखरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यम देवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धनतेरस पर सभी महिलाओं को रजत लेख की अपनी पसंद खरीदने के लिए गहने या चांदी की दुकानों पर खरीदारी करना व्यस्त हो जाता है। लेकिन बहुत व्यस्त कार्यक्रमों और काम के कारण कई महिलाओं को अपने पसंदीदा आइटम की खरीदारी करने के लिए समय की स्वतंत्रता नहीं है। इसलिए उनके लिए ऑनलाइन खरीदारी की अग्रिम तकनीक का विकल्प उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धनतेरस के लिए शुद्ध रजत लेखों की पेशकश करते हैं। और कई बार 21 वीं शताब्दी की महिलाओं की मदद करने के लिए अपने समय की सुविधा और धनतेरस और दिवाली का आनंद लेने वाले कार्य क्षेत्रों का आनंद उठाया जा सकता है।

कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। यह त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धनवन्तरि की पूजा का महत्व है। 

 

 

क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार -

 

भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। 

 

शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था। भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। 

 

धनतेरस के दिन क्या करें - 

 

धनतेरस के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी भी रूप में चांदी एवं अन्य धातु खरीदना अति शुभ है। 

 

धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें। 

धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। 

 

कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं। 

 

बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।

 

वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए। 

 

इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। 

 

इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। 

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