किसी विद्यालय की बात है। सत्र की शुरुआत के पहले दिन, पहले ही पीरियड में जब मास्साब अपना रजिस्टर लेकर कक्षा नवम में दाखिल हुए तो वहाँ फ़क़त एकमात्र छात्र को देखकर उनका ह्रदय अंदर ही अंदर गदगद हो गया परंतु अपनी कर्मठता दर्शाने के लिए उन्होंने अपनी भवों को तिरछा कर लिया और दो मिनट कक्षा में चहलकदमी करने के बाद उस छात्र से बोले, "32 बच्चे लिखे हैं इस रजिस्टर में और तुम कक्षा में अकेले हो। क्या पढ़ाऊँ तुम अकेले को? तुम भी चले जाओ।"
जनाब जब बालक पहले ही दिन पढ़ने आया था तो कुछ तो विशेष होगा ही उसमें।
बालक तुरंत बोला, "गुरूजी, मेरे घर पर दूध का कारोबार होता है और 15 गायें हैं। अब आप एक पल के लिए फर्ज करो कि मैं सुबह उन पंद्रह गायों को चारा डालने जाता हूँ और पाता हूँ कि चौदह गाय वहाँ नहीं हैं तो क्या उन चौदह गायों के कहीं जाने की वजह से मैं उस पंद्रहवीं गाय का उपवास करा दूँ?"
मास्साब को उस बालक का उदाहरण बहुत पसंद आया और मास्साब ने अगले दो घण्टे तक उस बालक को अपने ज्ञान की गंगा से पूरा सराबोर कर दिया और कहा,
"तुम्हारी गायों वाली तुलना मुझे बहुत पसंद आयी थी। कैसा लगा मैं और मेरा पढ़ाना?"
बालक अदभुत था इसलिए तुरंत बोला,
"गुरूजी, आपका पढ़ाना मुझे पसंद आया लेकिन आप पसंद नहीं आये।"
मास्साब ने तुरंत पूछा, "क्यों?"
बालक बोला, "चौदह गायों की गैरहाज़िरी में पंद्रह गायों का चारा एक गाय को नहीं डालना चाहिये था।
Very heart touching story
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